o lala o la la geet ka sufiyana version !!

कई बार  सुनने के बाद  इस गाने का सूफियाना रहस्य समझ आया. पहले और निर्बुद्धियो की तरह मुझे भी यह गीत वल्गर लगा था, किन्तु जब मैंने गाने को ध्यान से ‘देखा’ तब मुझे इसके गीत के ‘बोलो’ का रहस्य समझ में आया. वास्तव में ये गीत द्विअर्थी है. जिसका दूसरा अर्थ सूफियाना है. ये गीत नश्वर शरीर में कैद आत्मा और परमात्मा के मध्य संवाद के रूप में है. देखिये  कैसे-

Aha oo oo…..


ये इश्वर से जुड़ने का पहला संबोधन है

Sshh chutki jo tune kaati hai
Jori se kaati hai, yahan wahan


हे इश्वर !ये चुटकी रूपी ज्ञान के चोट से जो तुमने मेरे मनः मस्तिष्क में यहाँ वहाँ जो ज्ञान का संचार किया है, उसकी मै आभारी हू. ये चोट इतनी जोर से थी की अज्ञानता से बंद मेरे मस्तिष्क के कपाट के  द्वार सहसा खुल गए.

Roothi hoon, main tujhse roothi hoon

Mujhe mana le na o jaan-e-jaan

हे इश्वर!! अज्ञानता से मेरी बुद्दि इतनी कुंद हो चुकी थी की मेरी आत्मा ही म्मुझ्से रूठ गयी थी. अब इस ज्ञान के प्रकाश से मै इसे मनाऊँगी. ये आत्मा ही मेरी जान है, यहीं से मेरा जहान है ये अब मै समझ चुकी हूँ.

इश्वर कहते है-

Chedenge hum tujhko
Ladki tu hai badi bumbaat
Aha aha aha aha


छेड़ेंगे हम तुमको…अर्थात, तुम अज्ञान में रहो ये हम नहीं देख सकते. इसलिए समय समय पे हम तुम्हे ज्ञान रूपी उंगलियों से अज्ञानता के इस शरीर को छेड़ते रहेंगे. तुम बुम्बाट हो! यानी तुम ब्रह्म से बात कर सकने में सक्षम हो. और एक बार जब ब्रह्म का अहसास तुम्हे होगा तो तुम्हारी आत्मा अहा कर उठेगी.(वो भी चार बार)

Ooh la la, ooh la la, ooh la la, ooh la la
Tu hai meri fantasy


(यहाँ कवी सेकुलर हो गया है)….ओ अल्लाह!! ओ अल्लाह!! तुम ही मेरे जीवन की एक मात्र फंतासी हो…

Choo na na, choo na na, choo na na, choo na na
Ab main jawan ho gayi


मेरी आत्मा अब जवान हो चुकी है. अब ज्ञान रूपी ऊँगली ना करिये प्रभु!

Chua jo tune toh dil ne maari seeti
De de inn gaalon pe ek pappi meethi meethi
Yowan tera, saavan bhara
Bheeg gaya dil yeh mera


हे पुत्री! जब ज्ञान आत्मा को छूता है तो ह्रदय से सिटी रूपी ध्वनि निकल जाती है. हे अज्ञानी, आ, आगे बढ़ और ले ले इस नश्वर गाल पे ज्ञान का चुम्बन. और भर दे अपने यौवन को ज्ञान से. चुम्बन के बारिश की बूंदों से मेरा ह्रदय भी द्रवित कर दिया तुने!

Aaha tune hi barsaat karaayi
Kya kare yeh yowan bechara bechara bechara


नहीं नहीं प्रभु! ये बरसात तो आपकी ही दें है. कहा मै इस संसार रूपी मरुस्थल में पड़ी हुई अज्ञानता की मरीचिका की खोज में थी. और आपने ज्ञान की बारिश कर मेरे यौवन के ज्ञान की प्यास को बुझा दिया.
Ooh la la, ooh la la, ooh la la, ooh la la
Tu hai meri fantasy


ओ अल्लाह!! ओ अल्लाह!! तुम ही मेरे जीवन की एक मात्र फंतासी हो…

Gira ke apna pallu, ba re ba
Kar deti woh humo bekaraar

इश्वर कहते है, हे पुत्री, ये ज्ञान पे पड़े परदे को इस तरह बार बार ना गिराओ. ये पल्लू बार बार गिराने से काम नहीं चलेगा..एक ही बार गिरा दो. जैसे ही पल्लू इस नश्वर शरीर से गिरता है, मेरे अंदर भी एक उर्जा का संचार हो जाता है. जिससे मुझे तुम्हे ज्ञान से भर देने की इच्छा बलवती हो जाती है.

Aag lagayi tune tann mein kya kare yeh pallu bechara
Bechara, bechara, aa aa


आपके इच्छाओं  की जठर अग्नि से ही तो ये पल्लू बार बार गिर जाता है. इसमें मेरा क्या कसूर प्रभु!!
इसलिए हे प्रभु! मुझे अपने ज्ञान के आगोश में ले लो!! अब और अज्ञानता की इस पीड़ा से मुझे मुक्त करो!!!

स्वामी और कन्या 2: ‘प्रेम’ की चीर फाड़!!!”


एक बार फिर सुनिए कन्या और स्वामी के मध्य हुए चैट वार्तालाप के कुछ अंश. आज का विषय है “प्रेम”.

स्वामी:  (खुद में ही गुनगुनाने की अवस्था में बुदबुदाते हुए)

हो ?

नहीं  हो ?

क्यों  नहीं  हो ?

हो  तो क्यों  हो ?

होना  क्या  है ?

नहीं  होना  क्या  है ?

होना  और  नहीं  होना  , होने  या  नहीं  होने  से  कैसे  अलग  है ?

जो  है वही  है या जो नहीं है वो भी  है .

या …..

(तभी का कन्या का key board आगमन होता है.)

कन्या : प्रभु…ये क्या है…

स्वामी: टाइम पास!!

कन्या: क्यों कर रहे है…देखिये मै आ गयी…

स्वामी : अब  तो  देर  हो  चुकी  है  कन्या

कन्या : ऐसे  न  कहिये  स्वामी …… बहुत देर से नयन  बिछाए  राह  देख  रही  थी.

स्वामी : अब तो कह  दिया .

कन्या : स्वामी  वचन  वापस  ले  लीजिये

स्वामी : Arrow and Talk…..में  कभी  reverse gear नहीं  लगता  कन्या

कन्या : हेहेहे …

स्वामी : दांत  न  दिखाओ..

कन्या : तो  स्वामी  मधुर  और  प्रेम  वचन  तो  कह  सकते  हैं

स्वामी : प्रेम !!!!! (आश्चर्य का ठिकाना तो रहा, लेकिन रहने न दिया)

कन्या :  हाँ

स्वामी : संज्ञा  तक  ही  ठीक  है ये . क्रिया  तो बिलकुल  नहीं

कन्या : स्वामी

स्वामी : कन्या

कन्या : ऐसा  न  कहिये

स्वामी : कह  दिया

कन्या : प्रेम जीवन  का आधार  है  

स्वामी : प्रेम विपासना  है, वासना है……..वाह !!

(और अपने बैठाए तुकांत पे मुग्ध हो गए)

कन्या : नहीं  स्वामी

स्वामी : हा  कन्या

कन्या : मैं  यह  स्वीकारती  हूँ  की  मेरे  प्रेम  में  स्वार्थ  है  थोडा

स्वार्थ  आपको  पाने  का  आपके   समीप  होने  का

किन्तु  येही  प्रेम  है जो

मेरे  जीवन  का  आधार  है

स्वामी: ये आधार निराधार है

कन्या:ये मेरे  होने  का  कारन  है .

स्वामी : तुम्हारे  होने  का  कारन  तुम्हारे  माँ  बाप  है . इसका  श्रेय उनसे ना छिनो.

कन्या : ….और  उनके  बीच  का  प्रेम

तो  हुआ  न  प्रेम  मेरे  होने  का  कारन

स्वामी : नहीं  सम्भोग …

छी छी छी !!!

क्या  कहलवा  दिया  तुमने

कन्या : प्रभु  उसके  होने  की  वजह  भी  तो

प्रेम  है

स्वामी : नहीं …उन्माद  है

कन्या :  उन्माद ..

स्वामी : हा क्षणिक  शारीरिक  उन्माद

कन्या : प्रभु

स्वामी :  बालिके

कन्या : मेरे जन्म  का कारण आप  के  हिसाब  से  भले  ही  उन्माद  हो

किन्तु  आज  मेरे इस  जगह,  जहाँ  हूँ

मैं  उसका  कारन  प्रेम  के  अलावा  कुछ  भी  नहीं  मानती

और  आज के बाद  जो  भी  बनू  उसका  आधार  भी  प्रेम  होगा

हर  इक  मानव  के  अस्तित्व  में  प्रेम  की  मुख्य  भूमिका  है.

स्वामी : जहा  जहा  प्रेम  की  मुख्य भूमिका होती  है वहाँ वहाँ मूर्खता की पृष्ठ भूमिका है..

कहाँ फ़स गयी  हो प्रेम के झंझावातो  में …

कन्या : प्रभु  मेरे  लिए  जीवन  के मायने  प्रेम से अलग हो ही नहीं सकते

सुख  का आधार प्रेम है

आनंद  का आधार  प्रेम  है

प्रेम की परिभाषा  ही अलग है

और जिस  परिभाषा के अंतर्गत  हम  बात  कर  रहे हैं अभी

वो  इक  बहुत  छोटा  और  नश्वर  अंग  है  प्रेम का ‘

स्वामी : आनंद  का  आधार  प्रेम  नहीं ….मोक्ष  है

कन्या :  मोक्ष क्या ?

स्वामी : हाहाहा (ऐसे खुश हुए जैसे अज्ञानता का ऐसा अद्भुत उदहारण देखा ही न हो)

जो  कन्या  प्रेम  के  जंजालो  में फसी रहेगी  …

वो  मोक्ष  को  कैसे  जान  पायेगी ?

अगर  प्रेम  ही  करना  है  तो …इश्वर  से  करो …

उसे  अपना  Boyfriend बनाओ

कन्या : इश्वर  कहाँ  हैं

और  अगर  इश्वर  हर  वस्तु  हर मानव में हैं तो  उसी  मानव  से  प्रेम  कर  रही  हूँ

अर्थात

इश्वर  से  प्रेम  कर  रही  हूँ

प्रेम  भाव  है

इश्वर  भाव  है

वो  भाव जो सर्वापी  है

और जो इश्वर सर्व-व्यापी  है

वो उस  मनुष्य  में भी है

जिससे  प्रेम है मुझे

कहाँ  मैं इश्वर से प्रेम नहीं कर रही ?

स्वामी : हर  चीज़  में  जीवन  है  इसका  कत्तई  ये  मतलब  नहीं  की  हर  चीज़  ही  जीवन  है

(फिर एक बढ़िया और अप्रासंगिक आंग्ल उदाहरण पेश करते है..)

Every human has mother that doesn’t mean humanity has mother

पाया ???

I mean….got?

कन्या : स्वामी ….

स्वामी : और अगर  सभी  में  इश्वर  है .. तो  किसी  और  को  पकड़  लो

उसमे  भी  इश्वर  होगा ..

कन्या : मुझे  इश्वर  का  ये ही रूप  पसंद  है

स्वामी :  (अपनी भृकुटियो को सिकोड़ते हुए) निर्बोध !!!

कन्या : सबका  अपना इश्वर है और   सबका इश्वर एक है

स्वामी : इश्वर का क्या रूप  है रे ???

मै कौन  होता  हु  उसे  अपने  रूप  में जकड़ने  वाला ?

(फिर खुद पे ही मुग्ध होते हुए…)

मै कौन होता हू उस निराकार को आकार देने वाला??

कन्या : अभी  तो  इश्वर का मेरे  लिए आप है…

स्वामी : इश्वर  कोई  प्लाट  है जो  सबका  अपना  अपना  है ?

नहीं !!

इश्वर  एक  है

सत्यमेव  जयते

सॉरी ..

सबका  मालिक  एक  है

कन्या : और  मेरे  मालिक  आप

स्वामी : मै तो खुद  नौकर  हूँ.

उस  इश्वर  का

वो  ही  सत्य है

वो  ही  परम  सत्य  है

वो  ही …

(फिर कुछ याद ही नहीं आता उन्हें )

जो है वो ही है.

कन्या : उसी को पा  रही  हूँ

स्वामी : किन्तु  मार्ग  तो  गलत  है  न

कन्या: कृष्ण  या राम  इश्वर नहीं थे?

उसने  जुडी  हुई  अराधना  ही  इश्वर  है

कन्या : मूर्ति  में  शक्ति  नहीं  होती

स्वामी : अगर सही  सीमेंट  न प्रयोग करो तो..

कन्या:शक्ति तो आस्था  में  होती  है 

स्वामी : बिलकुल

कन्या : वो ही  इश्वर  है

मेरी  आस्था आप में है

आप  ही  इश्वर  हो  मेरे

क्यूंकि  मेरी  आस्था  उस  इश्वर  में  है  जो  सर्वत्र  है

जो सब  में  है

स्वामी : confuse मत  करो …

कन्या : और उसी इक रूप में मेरी आस्था  है

स्वामी : सबसे पहले  तो अपनी आस्था  को  एक  जगह settle करो

कन्या : वो  इक  ही  जगह  है

आप  में

आप में ही में मेरा इश्वर है

स्वामी : ये  पाप  है …ये गलत है….illegal encroachment है यह

कन्या : अब  का  करेंगे  स्वामी

आपको  अभी  सत्य  का  ज्ञान  जो  नहीं  था .  मैंने  करवाया  है

स्वामी : ये  आपका  भ्रम  है

कन्या : और  वैसे  भी  किसी  को, क्या  पाप  है  और  क्या  पुण्य है, का  निर्णय  लेने  का  कोई  अधिकार  नहीं  है   न  ही  शक्ति  है .

भ्रम में तो हम सब है

किसी  का  सत्य  किसी और का भ्रम है..

स्वामी : जिस  एक  स्वरुप  में  आपकी  आस्था  है , उसको  कोई  रूप  देना  उसके  रूप  ने  दाग  लगाना  है …

ब्रह्म  का  क्या  रूप  है ?

जिस  प्रकार  रेगिस्तान  में  मरीचिका  देख  लोग  पानी  समझ  बैठते  है …

ठीक  उसी  प्रकार  तुम  उस  एक  ब्रह्म  का  रूप  मेरे  अंदर  देख  रही  हो …

मेरा  सहारा  लेने  की  क्या  आवश्यकता  है ?

Direct  contact करो इश्वर से.

कन्या : क्यूँ ?…क्यूंकि  दूर  से दोनों  इक  जैसे  लगते  हैं  …. अंतर  उसी को पता चलता  है जो प्यासा  होता  है  और  वहां  तक  जाता  है  किन्तु …जिसे  प्यास  नहीं लगी  हो ..कई  बार  वो  पानी  भी मरीचिका  समझ  कर  छोड़  देता  है

और  जीव  हूँ  स्वामी  ..भ्रम का स्वरुप हो सकता  है की समझ में न आये

मैं  अपनी  श्रद्धा और आस्था से ही उन्हें पाना  चाहती  हूँ

ज्ञान  से  कोशिश  करू  तो  शायद  बहुत  वक़्त  लग  जाये

ज्ञान  तार्किक  होता  है

कित्नु  प्रेम

भक्ति

विश्वास  पे  आधारित  होती  है

विश्वास  कारण  नहीं  ढूंढता

स्वामी : तुम  उन  प्राणियों  की  तरह  हो  जो  स्वप्न  में  ही  रहना  चाहते  है ….

किन्तु  ये  जान  ले  कन्या ..

नींद  खुलती  है  एक  दिन …

सत्य  जानना  पड़ता  है

अंतर  दिख जाता  है

फिर  पश्च्याताप के सिवा कुछ न कर पायेगी ..

कन्या : मेरा   सत्य  उस  स्वप्न  की  भाँती  है  जिस  में  मुझे  पता है की यह सत्य है, मैं अपना  स्वप्न रच  रही  हूँ …क्यूंकि  अभी  यह  सोने  की  अवस्था  है ..

मैं  जानती  हूँ  की  यह स्वप्न  है

मगर  अभी  आनंद  आ  रहा  है  इस  स्वप्न  में

यह  अवस्था  बिकुल  उसी  भाँती  है  जिस  भांति  हम  स्वप्न  में  ही  जानते  हैं  की  हम  स्वप्न में  हैं

स्वामी : तुम्हे आनंद में आनद इसलिए आ रहा है क्युकी तुने  परमानन्द  का  सुख  नहीं  लिया …

एक  बार  परमानंद  का  सुख  ले के देख, आनंद को भूल जायेगी…

परमानन्द आनद का advance version है कन्या

क्यों  इन  क्षणिक pleasure  में पड़ी  है ;

नींद  से  जाग …

सही  मार्ग  को  पहचान

उठ…wake up.

कन्या : प्रभु  में  नींद  में  हूँ  ही  कहाँ… नींद में  होती  तो  यह  ज्ञान  कहाँ  होता  की  यह  स्वप्न  है . जब  हम  वाकई  नींद  में  होते  हैं  तो स्वप्न का ज्ञान  कहाँ  होता है?

स्वामी : हेहे …मुर्खता  की  एक  और  बात  की  तुने

कन्या : तो  अपनी  बुद्धि  का  परिचय  दीजिये  प्रभु

स्वामी : तू  मुझे  अपनी  बुद्धि  का  परिचय  देने  के  लिए  नहीं  कह  रही  है  कन्या …..

अपितु  बीन  बजाने  के  लिए  कह  रही  है ..

तू  अपने  क्षणिक  सुख  में  लिप्त  है. तुझे  और  कुछ  नहीं  दिख  रहा. ना ही तू देखना चाहती है.

कन्या : बुद्धि से  इश्वर  को  नहीं  पाया  जाता  प्रभु …बुद्धि  तर्क  है …और  तर्क  इश्वर  से  नहीं  मिलता  ,,दूरी  बढा देता है ,विश्वास  से  वहां  पहुंचा  जा  सकता  है

स्वामी : बहुत  सही

कन्या : प्रेम  का  मार्ग  छोटा  है ,में  छोटे  रस्ते  पे  हूँ

स्वामी : तू  गलत  रास्ते पे है.

कन्या : तर्क  दूर  करता  है  और  जब  तक  ज्ञान  मिलता है तब  हर तर्क खुद ही हार  जाता है.

स्वामी : गलत  और  आसान होता है छोटा  मार्ग .

कन्या : कौन  सही  है  और  कौन  ग़लत  मार्ग  पे  यह  तो  मंजिल  को  पाने  वाला  ही  बता  सकता  है  स्वामी

स्वामी :  तू  बहला  रही  है

फुसला  रही  है

मुझे

अपने  आपको

कन्या : नहीं  प्रभु

मेरी  बुद्धि ….

स्वामी : कम  है

कन्या : नहीं…..इतनी  तार्किक  है की मेरे मन को फुसलने  नहीं देती  है

स्वामी : हाहाहा…

कन्या :बस विश्वास  ही  इतना  मज़बूत  है  की  बुद्धि  को वश  में  रखता  है

स्वामी :यही  तार्किक बुद्धि तो तुझे सत्य से दूर लिए हुए है

तेरे  ही कहने के हिसाब  से

कन्या : उस  बुद्धि  का  तो  अतं  कर चुकी हूँ प्रभु तभी  तो  केवल  विश्वास और प्रेम से पा न चाहती हूँ इश्वर को

स्वामी : कोई  एक  बात  कर  कन्या…Confuse मत कर 

कन्या : मेरे  अंदर  कोई  confusion नहीं  है  प्रभु

स्वामी : confusion तेरे  अंदर  नहीं …तू  स्वयं  है

कन्या : जिस  जगह  पे  खड़े  हो  कर  आप  तर्क  कर  रहे  हैं

वहां  से  में  हो  आई  हूँ

स्वामी : हाहाहा

यहाँ  से  तू  हो  आई  है ?

तू  सत्य  से  हो  आई  है ?

वापस  असत्य  में ?

कन्या : वो  सत्य  नहीं  है जो आप कह  रहे  हैं …

स्वामी :च!! च!!च!!

कन्या : और वो भी सत्य नहीं है जिस पे नहीं तर्क कर रही हूँ

स्वामी : देखा प्रेम करने  का फल ……बुद्धि Confusion से भरी हुई है.

कन्या : अगर सत्य का अनुसरण  करते  तो  हमारे  बीच यह बहस  ही नहीं होती

स्वामी : ये  बहस  नहीं  है  रे …..

ये  ज्ञान  का  प्रवाह  है …जो  अपने  आप  मुझसे  निकल  रहा  है …जैसे  शिव  जी  से मदर गंगा

कन्या : स्वामी ..

स्वामी : मूर्खे

कन्या : आप  के  सहमत  हो  जाउंगी  तो  अपने  वचनों  से फ़िर जाउंगी और  अगर नहीं होंगी  तो प्रेम  की  परिभाषा  से

तो  मैं  इस  विषय  पर  क्या  हूँ

स्वामी : तू  हमेशा  दुविधा  में  रहेगी  इसी  तरह

क्युकी  प्रेम  का  मार्ग  ही  ऐसा  है

कन्या : मैं  दुविधा  में  नहीं  हूँ  स्वामी

प्रेम  में  हूँ

स्वामी : एक ही बात है…जैसे तेरा स्वप्न वाला केस है…

कन्या : नहीं  ऐसा  लग  रहा  है  की  में  स्वपन  में हूँ  और  मुझे  पता है  की यह  स्वपन  है

स्वामी : पागल  मनुष्य जो  पहली  बात  बोलता  है  वो  यही  की  वो  पागल  नहीं  है

किन्तु  हाय रे  किस्मत !!

वो  पागल  ही  होता  है …

ये  काम  डोक्टर  का  है

जैसे की मै यहाँ …

कन्या : और  आपको  लगता  है  की  आप  डॉक्टर  हैं ?

स्वामी : लगता ????

भारी अज्ञानता  में है तू तो

इलाज़  मुश्किल  है

किन्तु  असंभव  नहीं

क्युकी  तू  मेरे  पास  आई  है

मै १०० % GUARANTEE  देता हूँ अपने मरीजों  को ..

कन्या : स्वामी  में तो फिर  अनंत काल के लिए अज्ञान  और  मरीज़  होना चाहूंगी

चलिए  इसी  तरह  आपके  संपर्क में रहने का मौका मिलेगा.

और मेरे जीवन का उद्देश्य ही क्या है?

स्वामी : (मुस्कराते हुए)कन्या…..इलाज  मेरे assistant करेंगे.

स्वामी : मै अभी  उनका  नाम  पता मेल  किये  देता हूँ.

और हमारी  कोई  और  शाखा  नहीं  है ..

Payment cash  mode में ही होगा….वो क्या है की आश्रम की कार्ड मशीन खराब चल रही है.

कन्या : आप बात से फिर रहे हैं स्वामी..मैं  तो  बस  आप  ही  से  इलाज़  करवाना  चाहती  हूँ

स्वामी : hummmm

अच्छा  इलाज चाहती  हो ?

कन्या : इलाज़  चाहती  हूँ  लेकिन  ठीक  होना  नहीं

स्वामी : मुझे  पता  है …

यहि होता  है …

अज्ञानता  चीज़  ही  ऐसी  है …

तेरी  क्या  गलती  है ?

ये  प्रेम का विषाणु  ही  ऐसा  है …

कन्या : अगर  ज्ञान  को  प्राप्त  करने  का  अर्थ

अर्थ  आप  से  दूर  होना  है  तो  मैं  अज्ञानी  ही  सही

स्वामी : फॉर्म  भर  के  admission ले लो, और हां कोई  और  कन्या  है  तो  उसे  भी  ले  आओ … हमारे  worker खुश  होंगे

कन्या : फॉर्म भरने की क्या आवश्यकता है…..emergency केस  है

स्वामी :  हेहेह …

मुर्ख …डाक्टर मै हूँ ना..

कन्या : हां…

स्वामी : तो  मुझे  जानने  दे  की  क्या  emergency   है  और  क्या  नहीं …..

तू  मुझसे  ठिठोली  कर  रही है???

कन्या : नहीं स्वामी,

स्वामी  आप रुष्ट हो  रहे  हैं ?

स्वामी : नहीं  रे

तेरी  बीमारी  का  स्वरुप  देख  मै रुष्ट हो  ही  नहीं  सकता …

तेरी  क्या  गलती  है

कन्या : वो ही  तो  स्वामी

कितनी  नादाँ  हूँ  न मैं 😉

स्वामी : 🙂

तू  घबरा  मत

सब  ठीक  कर  दूंगा

बस  पेमेंट  का  देख  ले

कन्या : क्या  पेमेंट  है

स्वामी : 🙂

वैसे  तो  आसाधारण  बीमारी  है  तेरी…

मुश्किल इलाज है …

प्रेम  का virus बहुत contagious  होता  है …

हमारे  workers  भी  खतरे  में  होंगे … तो  इस  हिसाब  से  तू  लगा  ले ..

कन्या : किन्तु मुझे  तो स्वामी को बीमार करना है.

स्वामी : हा हा हा हा हा !!!!!

मेरा  तो  टीकाकरण  है  रे !!!

कन्या : यह  बिमारी  अक्सर  टीकाकरण  क  बाद  ही  हो  जाती  है

स्वामी : मरीज़  है  न  तू ???

कन्या: जी..

तो  वो  ही  रह  न ..

कन्या : बिमारी  के  symptoms मैं  झेल  रही हूँ न !

स्वामी: पिछले  २०  सालो से R&D कर रही है हमारी टीम …इसपे.

थोडा  संयम  तो  रखना  होगा  न

कन्या : सारे  खुद  मरीज़ रह  चुके  हैं

और  जाने  कितने  अपना  मुख्या  अंग  भी  खो  चुके  हैं

स्वामी : जैसे ?

तू  मष्तिष्क  की  बात  कर  रही  है  न ? तो  उसे  तो  खोना  ही  पड़ता  है ..

कन्या : नहीं  जी

अब  रहा-सहा  वो ही  केवल  रह  गया  है  उन  में 😉

ये सुनिए प्रभु,

“Man’s heart is made of glass, once crack can’t be mend, women’s heart is made of wax, even though it melts and burns so many time, but still can be reused..”

स्वामी : अच्छा!! तो यही कारण है  की  तेरे  समाज  में  एक  लड़की  कईयों से  चक्कर  चला  लेती  है ….मोम  ठीक कर कर  के!!

कन्या : नहीं ……..They never losses the ability to love.  मैं  यह  कहना  चाहती  हूँ ….

स्वामी : की  तू  मुर्ख  है

कन्या : नहीं

स्वामी : हां

कन्या : की  मैं  बहुत  प्रेम  करती  हूँ  आप  से

स्वामी : तू  मुझे veterinary का  डॉक्टर  समझती  है ?

कन्या : अब  ऐसा  क्या  किया  मैंने

स्वामी : तू  क्यों  जानवरों  जैसी  हो  गयी  है….  Uncontrolled ??

अरे  मनुष्य  का  रूप  है  तो  उसी  में  रह !

और अब बस कर…

जा के पैग बना.

कन्या : कैसे बनाऊ?

नीबू  आज भी नहीं है

Orange juice चलेगा ?

स्वामी : ये कर्मचारी भी निकम्मे हो गए है. कितनी  बार कहा की पेड़  लगाओ  आश्रम  में …

खैर ….

Orange juice है  तो …वही ले आ….

और कुटिया से वोदका भी लेती आना, सुना  है बड़ा  तेज़  है इस द्रव्य  में …

और  सुन …..

कन्या: हाँ कहिये…

स्वामी : वो रूस वाली  लाना …

वहा की कन्यायो जैस प्रताप है उसमे…

जा !

कन्या : तब  तो  बिकुल  भी  नहीं लाऊंगी स्वामी!

स्वामी : अच्छा  अच्छा ….

वहाँ के  बालको  का  भी अपना मज़ा  है

तू  ला  तो

कन्या: मुझे  किसी  और  का  मज़ा  नहीं  लेना  है मुझे तो…

स्वामी : (चिल्लाते के अपने कर्मचारियो को बुलाते हुए)….अरे इसे जल्दी से भरती कराओ कोई!!!

(और फ़िर पर्दा निचे गिरने लगता है और ज्ञान का नशा चढ़ने लगता है!!)

पटकथा  एवं  निर्देशन   : मानस  त्रिपाठी

मंच  संयोजन : wordpress.com


स्वामी और कन्या:1 “सत्य और ज्ञान कि चीर फाड़!!!”


प्रस्तुत  गद्यांश  दो  लोगो  के  परस्पर  संवाद  पे  आधारित  है . जिसमें स्वामी जी ने  हाल ही  मे  ‘रेडीमेड ’ ज्ञान  प्राप्त  किया  है  और कन्या  अपनी  संसारिकता  से  सुखी , किन्तु  स्वामी  से  दुखी , उन्हे  अपनी बात  समझाने की कोशिश कर रही है . ये  प्रहसन  उस  समय  का   है  जब वो  google chat पे  मिलते  है …….

………………..

कन्या : boss!!u there?

स्वामी : जी

कन्या : कैसे  हैं  ?

(फिर कुछ  सुनी  हुइ  बातों को  याद  करते  हुए  )  क्या  बात  है ?

सन्यास  लें  रहें हैं  क्या  बाबा ?

😛

स्वामी : जी

कन्या : कृपया  ऐसा  मत  किजिये .. मेरा  क्या  होगा ..ये  बालिका  तो  मर जी जाएगी .

बोलिए ?

स्वामी : मर जाओगी ??

तुम  मर  जाओगी  …

मै  मर जाऊँगा  …

किन्तु  जीवन ……

कन्या : नही  मरेगा

स्वामी : बिल्कुल .

क्युकी  जीवन  नही  मरता…………

कन्या :  नही  नही  प्रभु!!!!

मेरा  उद्धार किजिये

मुझे  ऐसे  नही  मरना है .

मुझे  तो  आपकी  बाहों  में मरना  है ….

🙂

स्वामी : ये  दैहिक  अभिलाषा  छणिक  है  कन्या …

ये  उधार का शरीर है ….यहीं चुकता करना होगा

कन्या : ठीक  है,

किन्तु  उसके  पहले  इस  संसार का सुख  तो भोग  लूँ स्वामी

स्वामी : (मुस्कुराते  हुए धीरे  से ) अज्ञानी !

कन्या : स्वामी

यही श्रृष्टि का नियम है

यहीं से जीवन उपजता है

जो  कभी  नही मरता

तो फिर इसका भोग करने से कैसा परहेज

स्वामी : क्षणिक  सुख  कि वस्तुए हैं….

ये  सब.

कन्या : वस्तु  नही  स्वामी

गृह है यह …..

जीवन  का ….

बिकुल  अपनी  सृष्टि   के  समान

जैसे  संसार का जन्म ब्रम्हांड की कोख में है

वैसे ही मानव का जन्म मानव की कोख में .

स्वामी : (माथे  कि  शिकन  को  गिन्ती  करने   लायक  बनाते  हुए  )

bramhand is not pregnant with world..  ..

(और  फिर  भाव  के  उस  दशा  मे  आते हुए जब  कोइ  भंग  का   सेवन  करने के  बाद  आता है )

और  ये  सृष्टि   तो  कल्पना  है  रे …

कन्या : अगर  ये  सृष्टि  कल्पना  है  तो  यह  जीवन  भी  कल्पना  है .

और  अगर  ये   जीवन  कल्पना  है  तो ….

येह  देह  भी  कल्पना  है .

तो  कल्पना  में  किया  हुआ कोई भी कार्य पाप नहीं ……………

स्वामी : (कुछ विचार  करते हुए  ) तुझे  अभी अध्यात्म का क्रश कोर्स करना होगा

कई त्रुटियाँ हैं तेरे ज्ञान में ….

कन्या : ज्ञान  क्या  है ??

और  सृष्टि क्या  है …?

स्वामी : ज्ञान  सत्य  को  जानने  का माध्यम है …

कन्या : (बिना  सुने  हुए बोलती रही ) सत्य  क्या  है …. क्या  है  मिथ्या ?

(और  फिर  खुद  हि  उत्तर  ढूंढते हुए )

वो ही  सत्य  है  जो  जनमो  से  दोहराया  जा  रहा है

स्वामी : सन्सार  है  मिथ्या ….

कन्या : या  मानव  द्वारा उत्पन्न और लिखा हुआ…

स्वामी : मानव तो स्वयं अज्ञान में है रे बालिके ……

कन्या : सत्य  और  मिथ्या  मानव मस्तिस्क के दो भाव है

स्वामी : नही  ये मस्तिस्क  के भाव नहीं, ज्ञान का आभाव है

कन्या : ये  वो  दो  मापदंड है  जिस  से  मानव  को  ये भ्रम होता है की वो अपना  जीवन  जी  रहा  है  …

स्वामी : बिल्कुल  सत्य …..

कन्या : ज्ञान  क्या  है ? और  किस  के  लिए  है
कहाँ  से  उत्पत्ति हुई है इस की ?

स्वामी : ज्ञान  किसी के लिए  नही …..अपितु  हम  ज्ञान  के लिए  है

कन्या :कौन करेगा  ये  निर्धारित  कि  जो  ज्ञान  कि  परिभाषा  है  वोही  ज्ञान  है

या कुछ और ?

स्वामी : ( मुस्कुराते हुए ) वस्तुनिष्ठता से वंचित ना करो ज्ञान  को …

खुद ज्ञान….

कन्या : (बीच  मे  ही जैसे  सुनने का कभी  अभ्यास  और   प्रयास  ही न किया  हो ) …..और  ज्ञान  अगर  मनुष्य के लिए  है  तो …

मनुष्य द्वारा ही उपजा है …

और  अगर  मनुष्य  और  उसकी  वृतियाँ  मिथ्य  हैं   तो  उसके  द्वारा   रचित  ज्ञान  कैसे  सत्य  हो  सकता   है ??

स्वामी : मेलोडी का   सेवन करने के  उप्रान्त ही  ज्ञान  होता  है  कि  मेलोडी  का  स्वाद  कैसा   है …

मेलोडी के स्वाद को परिभाषित नहीं किया जा सकता ….आत्म्साद  किया  जाता   है …

कन्या : बिकुल  सही  !

स्वामी : ठीक  उसी  भाँती  ज्ञान  को  परिभाषित  नही , आत्मसात  किया जाना   चाहिए …

कन्या : तो  स्वामी  अब  आप  सम्झे  जो  हम  आपको  कब से समझाना चाहते थे.

(स्वामी  जी  कुछ आश्चर्यचकित और  विस्मय  की स्तिथि में आ जाते हैं )

…उस  दिन  जब हम  आप को  यकीन  कर  के  आगे  बढ्ने  को कह  रहे थे  तो  मान  नही  रहे  थे ..

स्वामी : (कुछ सोचते और याद  करने की अवस्था में  अपने  आपको  ढालते हुए ) कौन से   दिन  बालिके ?

कन्या :……और  हम  कह  रहे  थे की …

“it feels so helpless sometimes”
स्वामी :  किस  समय  की  बात  कर  रही  हो ?? समय  पे  निर्भर  न  हो …..

समय  तो  खुद  हमपे पे  निर्भर  है ….

कन्या : its exactly like tasting sugar and not being able too exactly tel what it tastes like

स्वामी : अंगला  भाषा  है  न  ये ?

कन्या : क्या ?

स्वामी 😦 बात  को  टाल्ने  कि  मुद्र  मे ) ये  कौन सी  भाषा का   प्रयोग  कर  रही  हो  बीच-बीच  में  जो  मेरे  मष्तिस्क  को  मात्र  छु  कर  निकल जा   रही  है ….

आंग्ल भाषा  से  इश्वर  कि  पहचान सम्भव  नही  है …..

उस से सिर्फ  “God”   मिल  सकते  है …

(और  स्वामी  जी हँस  के  इसे  लातिफा  घोषित  कर देते  है )

(किन्तु  कन्या  अपने  बोलने -और -न -सुनने  वाली   निरन्तरता  बनाए  रहती है )

कन्या : ज्ञान  और  सत्य  मनुष्य  के  द्वारा  उत्पन  कि  गई  दो  स्थितिया  है  जो  उसका  जीवन  आसान  और  दुख विहीन  बनाने कि  कोशिश  करते हैं

स्वामी : (जैसे  अपने  आप  से  कहते  हे ) कितनी  असत्यता  है  तेरे  सत्य  मे ….

कन्या :….. क्यूंकि शायद जो  सत्य  और  ज्ञान  को  दर्शाते है वो मानव द्वारा  विकसित  किया गया है …

अगर  सत्य  तेरा  और  मेरा  है  तो ….

फिर  सत्य  कहाँ  रहा

स्वामी : जहाँ  उसे  रहना  चाहिए …

सत्य  और  ज्ञान दोनो  हि  व्यक्तिनिष्ठता  से परे है  ….

कन्या : सत्य  तो  वो  है  जो  हर  जगह हर  परिस्तिथि  में  हर  किसी  के  लिए  समान  रहे

स्वामी : बिल्कुल …वस्तुनिष्ठ ही इसका आभूषण है ….

(फिर  अपने  किए  गए  तुलनात्मक  अध्ययन के  बारे  मे  सोचना शुरू करते  हैं और  उसे  बीच  मे ही छोड़कर …. )

तुम  मेरी  ही बातें कर के मुझे  विचलित  न  करो  …….

कन्या ; आप  गुरु  देव  हैं  …

स्वामी : हा  ! बिल्कुल सही .

कन्या : ….. मैन   आपको  विचलित  नही  कर  रही  हूँ

आज  भी  मेरे  लिए  वोही  सत्य  कि  परिभाषा है  जो   मेरा  सत्य  है

क्यूंकि आज तक मुझे ऐसा सत्य नही  मिला   जो  हर  परिस्थिति में  सत्य  ही  रहे ?

स्वामी : क्युकी  तुमने  सत्य  को  पहचानने से इनकार कर दिया …

सत्य  को  सत्य  कि  तरह ना  देख  तुने  अपने  सुख  के  पैमाने  से  नापने की कोशिश की  ….

एक  मिथ्य  कोशिश …..

जिसके मूल का यथार्थ ये  है  कि  सत्य  वो  है  जो  इन्द्रियो  को  सुख  प्रदान  करे …..

जीवन  को  सुखी  बनाए …..

जो  कि  सत्य   नही  है …

(अपनी  बातों का amount बढाते हुए )

जो  कि  असत्य  है .

कन्या :   ऐसा नहीं है .. क्यूंकि हर  सत्य  और   मिथ्य …जो  सो  called  हम  सम्झते  हैं की  सत्य  या  मिथ्य  है  …वो  किसी  न  किसी  कारण  से  प्रभावित  प्रतिक्रिया  होती  है  मानव  कि  या  सृष्टि की

(फिर  कन्या  अपने   आपको  जोश  कि  अवस्था में धकेलते हुए  …)

Man was born to live and to attain the ultimate peace for his soul. And he was given a help (mind) to reach and complete his mission. The mind was provided to repeatedly remind him of his mission, and it did so. It consistently reminded the man of his mission to achieve the ultimate peace of his soul. the man started planning his path to reach to the target given to him or decided for him, but alas! he got so engrossed in building and planning his path that he forgot his main destination his main aim and started working for the path itself. he accidentally assumed his path to be his destination and exhausted all his energies in attainment of the path rather than the destination but the desire behind attaining the path was always guided by the mind which always reminded him of the aim with which he was born, born to attain, to complete his mission. the path is all the worldly thinks that the man desires but the actual desire is of happiness, completeness, the filling of his empty heart but the worldly matters only gives him momentary happiness not long-lasting, and his thirst is yet again unmet. he again strives for another worldly matter and again he is beaten, and the cycle keeps on revolving. the mind reminds him of the mission, but it was not designed to build plans because no plan was required, it was just the way it was to come and was to be done. the man was just required to walk keeping a faith that he was on right path to attain his aim and that belief would exhaust his thirst and will kill all his worldly desire and a sense of fulfillment will arise in the soul. And that’s what they call the path of truth, the path of believe, the path of faith that gives joy and will let u reach the destination for which you were born and …………………………………………………………………

स्वामी  जी  कन्या  कि  बात  सुनते  सुनते  मानविक  सम्वेद्नाओ  को  एक  के  बाद  एक  महसुस  करने लगते  है ….कुंठा से अस्चार्य , आश्चर्य से विस्मयता, विस्मयता से निर्थकता ,और फिर  निश्चिन्तता कि  स्टेज मे आकर कुछ करने लगते हैं …… अचानक  उन्हें कुछ याद  आ  जता  है  और  वो  उठ  के  चले  जाते  है …..कन्या पुछ्ने   हि  वाली  होती  है  कि  वो   ओझल  हो  जाते  है .

थोडी  देर  बाद  स्वामी  जी  का प्रवेश   होता   है .

स्वामी : …ले  कन्या ….pag  बना ….

धीरे  धीरे  पर्दा  गिरने लगता  है .और  ज्ञान  का   नशा  चढ्ने  लगत  है .

नेपथ्य से ……

अभी   आप  सुन  रहे  से  परिचर्चा  जिसका   विषय  था   “ सत्य  और  ज्ञान  कि  चीर फाड़ ”. चर्चा  मे  भाग  लेने  वाले  थे स्वामी   जी  एवं  कन्या . और  चर्चा से  भाग  लेने  वाले  थे श्रोतागढ़ .

पटकथा  एवं  निर्देशन   : मानस  त्रिपाठी

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“owl people” and “people like owls”

Owl people का मतलब मुर्ख लोग नहीं होता . ये एक मनोवैज्ञानिक शब्द युग्म है . ये उन लोगो को कहते है जो रात में ज्यादे क्रियाशील होते है .people like owl का मतलब मुर्ख लोग होता है . समाज में वो लोग जिसे समाज मुर्ख समझता है , उल्लू कहता है . मै इसे उल्लुओं का सामाजिक महत्व मानता हु . ऐतिहासिक महत्व भी है . क्युकी बहुत पहले से ही ऐसा कहा जाता आया है . प्राथमिक विद्यालायल के dean के हैसियत से कितने ही अध्यापको ने उल्लुओ और कुछ विद्यार्थियों का तुलनात्मक अध्यनन प्रस्तुत किया है . और जिस हैसियत से वो इसका उपयोग करते थे उसमे लहजे का विशेष ध्यान रखते थे . लहजे के उतार चढाव से “उल्लू ” नामक विशेषण का महत्व अपना स्थान परिवर्तित कर लेता था . मध्यम स्वर में लगाये गए विशेषण का अर्थ ये था की की जिस किसी विद्यार्थी के  लिए कहा गया है वो मुर्ख तो है किन्तु उसकी मुर्खता में एक मासूमियत है . ये एक वजह है जिससे वो सुधर सकता है . दूसरी वजह खुद “dean ” साहब है जो इसे सुधारने के लिए संघर्ष करने को तैयार हो गए है . किन्तु जब तीव्र स्वर में उल्लू का उपयोग होता है तो इसका सीधा मतलब है की अब कोई संभावना नहीं है . अब बहुत देर हो चुकी है . सामने वाला किसी भी तरह से सुधरने वाला नहीं है . वो आजीवन उल्लू ही रहेगा . अध्यापक भी देख लेगा की कोई कैसे सुधार लेता है उसको . क्युकी मजाक तो है नहीं

इसके अलावा कोमल स्वर में उल्लू का संबोधन प्रेमिकायो के लिए सुरक्षित है . जब कभी भी प्रेमी उनकी वो बात नहीं समझता जिसे वो सबसे ज्यादे समझाना चाहती है , और सामाजिक मान मर्यादा का ध्यान रखते हुए कह नहीं पाती, तो उल्लू कह देती है . कुछ प्रेमिकाए कभी कभी “i love you” के जगह प्रयुक्त होने वाले सर्वनाम के रूप में भी उल्लू का उपयोग करती है . ऐसा प्रहसन अक्सर उन्माद वाले “उन ” पलो मे होते है. इस तरह से संगीत की पृष्ठभूमि का उपयोग करके मूर्खो की कोटिया और उपयोगिता निर्धारित की गयी है .
तो यह तो तय है की “उल्लू ” का विशेषणात्मक महत्व ही रहा है . संज्ञात्मक नहीं . ऐसा नहीं है की जब कोई किसी को उल्लू बोलता ही तो बादलो की तऱ्ह कुछ बन जाता है जो बूंदों की तरह उसके दिमाग तक जाता है और उस बादल में उल्लू का चित्र उभर आता है . (जैसा की comics में सोचते हुए दिखता है ).नहीं . अपितु वो सामने वाले की बुद्धी को तौलता है की अगर कोई समस्या आ जाये तो ये बुद्धी की कितनी सीढिया चढकर उसे उतार सकता है . उल्लू के रंग रूप से कोई मतलब नहीं है . बड़ी बड़ी गोल आँखे है तो हो . समाज को कुछ लेना देना नही है उससे . कोई मनुष्य अगर कुरूप है तो उसे उल्लू नहीं कहते . उसके लिए चिड़ियाघर में और भी जंतु है . मनुष्य बहुत ही चालक जानवर है  . इसलिए उसने सोचा होगा की अगर एक ही जंतु की कई सारी विशेषताओ को सामाजिक स्थान दिया जायेगा तो उसका भाव बढ जायेगा . इसलिए अलग अलग विशेषणों के लिए अलग जन्तुओ की पहचान की गयी है . और किसी को भी एक या दो से ज्यादे विशेषण नहीं दिया गया है . उसपे से कुछ जानवर सिरे से नकार भी दिए गए है . जैसे उल्लू की तरह चम्गादर भी रात दो दौड़ता भागता है लेकिन उसके विशेषण को मनोविज्ञान मे सम्मान प्राप्त नही ही .

चाम्गादरो मे इस वजह से रोष भी व्याप्त है . इसके लिए उन्होंने काफी दौड़ भाग भी की है की उल्लुओ की जगह उनके नाम की मंजुरी मिल जाये . रात में आपने देखा होगा यहाँ से वहा भागता रहता है . दरसल वे अपनी अर्जी लेकर home ministry, foreign ministry , social department , कहा -कहा जाते राहते ही बस इसलिये की एक बार उल्लुओ का social status उन्हे मिल जाये . लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ .

application कुछ  इस  प्रकार  थी ,

To,

Home minister
Home ministry, jantu Pradesh.
Subject – चम्गादर society के पुनरुत्थान तथा उनके मानव समाज में अपने विशेष विशेषण की वजह से अपना स्थान सुरक्षित कराने हेतु .
Dear Lomdi महोदया ,
हम , चम्गादर समाज , हमेशा से ही पिछड़ी जातियों में रहे है . हमारे लिए कोई reservation की व्यवस्था भी नहीं की गयी है . नहीं हमने कोई इसके लिए कभी मांग की है . जंतु समाज में हमने अपने kaam के प्रति हमेशा तत्परता दिखाई है . रात रात भर हम postal एंड telicom डिपार्टमेंट की तरफ से नियत ड्यूटी करते आ रहे है . हमने कभी भी कोई promotion, इन्क्रीमेंट या जॉब शिफ्ट की कोई मांग नहीं की . हमारा स्थानांतरण एक पेड़ से दुसरे पेड़ , और कभी कभी low income area जैसे library या , पुराने खँडहर में भी कर दिया जाता है . लेकिन हमने कभी कोई शिकायत नहीं की .
mahodayaa अपनी इस स्थिति को स्वीकार करते हुए हम आपसे इतना अनुरोध करते है की हमें प्रदान किये गए विशेष गुण को ध्यान में रखते हुए हमारे इस विशेषण को द्वि -पग जंतु (मानव )समाज में प्रचार प्रसार किया जाये . ताकि जयदे से जयदे लोग इसे जाने जो हमारे पुनरुत्थान की दिशा में एक सार्थक प्रयास होगा . ताकी हमारा ये विशेषण भी उस समाज मे स्थान पा सके .
आपके इस कृत्य के लिए चम्गादर समाज हमेशा के लिए आभारी होगा .
सधन्यवाद .
Yours
Chamgadar, P&T deptt

संलग्नक –
1. An attested copy by pradhan chamgadar on Explanation of trait and its relevant to bi-pedal animal society.

संलग्नक इस प्रकार से लिखा गया था –
जंतु समाज में हम प्रतिष्ठा प्राप्त , अति उपयोगी , रात्रि विचरक जंतु है . जंतु समाज का कॉल सेण्टर हमारे बिना एक रात भी नहीं चल सकता . अब हम अपने इस प्रतिष्ठा को आगे ले जाते हुये द्वि -पग जंतु समाज में अपना एक स्थान सुरक्षित करना चाहते है .इसके लिए हम हमारे विशेष गुण की स्वीकृति चाहते है ताकि जब भी कोई मनुष्य वो काम करे जिसे वो इस गुण से प्रतिभूत हो जाये, तो उसे “चम्गादर कही के ” के सर्वनाम से संबोधित किया जावे .

हमारे उल्टा लटकने के इस गुण का पर्याप्त उपयोग आपके समाज मे किया जा सक्त है . आपके यहाँ भी कई ऐसे लोग है जो ऐसा कृत्य करते है . शारीरिक न सही मानसिक और कार्मिक रूप में ही सही . कई ऐसे लोग है जो हमेशा उल्टा ही सोचते है या करते है . जैसे साहित्यकार या लेखक . वो कभी भी सीधे नहीं सोचते . उनके लिए सवाल का जवाब ,जवाब न होके , सवाल ही होता है . अगर उनसे पूछा जाये की “आपकी पसंद क्या है ?”, तो वे बोलेंगे की “अजी पसंद का क्या है ?”. यहाँ तक की “पसंद का क्या है ?” नामक शीर्षक पे व्याख्यान देना हो तो २ -4 दिन चुप ही न हो . लेकिन चुप चाप ये नहीं कह सकते है की वो क्या पसंद करते है . कुछ लोग जो कविता , ग़ज़ल वगैरह लिखते है वो प्रेमिका को प्रेमिका छोड़कर सब कह देंगे . सारी आकाश गंगा को छान लेंगे . बगीचों तक को रौंद डालेंगे . लेकिन प्रेमिका नहीं कहेंगे . कुछ महापुरुशो की एक आध संताने भी निकल जाती है ऐसी . जैसा कहोगे उसका ठीक उल्टा ही करेंगे . सर पटकते रह जायेंगे और वो सर पटकते हुए आपको देखते रह जायेंगे . लेकिन करने की बारी आयेगी तो उल्टा ही करेंगे . तो इस तऱ्ह से मनोविज्ञान इसका उपयोग व्यक्तित्व परीक्छान में भी कर सकता है . एक नयी ही पेर्सोनालिटी बन जायेगी , “bat personality ” अर्थात चम्गादर व्यक्तित्व . इसका बहुत हि उपयोग है . क्युकी बहुत सारे लोग चम्गादर व्यक्तित्व के धनी है इस समाज मे.
तो कृपा करके हमारे इस अनुसन्धान का लाभ उठाते हुए सही दिशा में समुचित प्रयास करने का कष्ट किया जावे
चम्गादरो की सभी official कार्यवाही जंतु प्रदेश से तो ३ दिनों में ही हो गयी लेकिन उनकी फाइल द्वि पग जंतु समाज में कितनी files के निचे दबकर किसी तऱ्ह से सांस ले रही है ये कहना मुश्किल है . कारण बताने की जरुरत मै नहीं समझता . और उम्मीद है की आप भी पुछ्ने की जरुरत नहीं समझेंगे.
खैर उनका क्या हुआ या क्या होगा ये तो भविष्य की कोख में है .(the future is pregnant with their fate). हम वापस उल्लुओ पे आते है . हां तो मै कह रहा था की दो विशेषण , रात्रि विचरण और मुर्खता , को मानव ने क्रमशः मनोविज्ञान एवं समाज में पहचान दी है . मनोविज्ञान कहता है की जो पुरुष (या स्त्री ) रात्रि में जागते राहणे के आदी होते है उनको “owl people” कहते है .

तो ऐसे कई लोग है जो रात्रि विचरक और विचारक होते है . इनका एक ग्रुप भी है जो call centero में एकत्रित होता है . रात भर काम चलता है . दिन भर सोया जाता है .( मूल चिंता का विषय ये है की कुच्ह जरुरी आवश्यक आवश्याक्तावो (मूलतः मदिरा पान ) के लिए कब समय निकल पाते होंगे ? किंतु चिंता करने की आवश्यकता नही है . जो लोग मदिरा पान के प्रती सजग रहते है वे कोई न कोई समाधान निकाल ही लेते है.)
ये एक आदत की बात है . हमेशा से ही बडे बुजुर्ग ( जो हमेशा kuchh न kuchh कहते ही रहते है )कहते आये है की जल्दी सोना चाहिये और जल्दी उठना चाहिये . kuchh लोग इसका अनुकरण करते है . कूच विद्रोही भाव के लोग नही सुनते है और रात भर जगते है . ये लोग किसी भी chiz ko, खास्तौर से बुढे बुजुर्ग की बातो को , बिना परीक्षण किये नही मानते . ये वैज्ञानिक बुद्धी के लोग होते है . बिना तर्क के किसी भी तथ्य को स्वीकार नही करते . रात मे जल्दी सोने का तर्क इन्हे अभी तक जंचा नही है . इसलिये रात भर जगते है . और तब तक जगते रहेंगे जब तक इनकी वैज्ञानिक त्रिष्णा का समुचित उत्तर नही मिल जाता . उसके बाद ये sorry बोल के सोना शुरू कर देंगे . खैर . इन owl people ने इस वैज्ञानिक बुद्धी के बल पे कई बार ये सिध्द भी किया है की रात मे जागना कितना लाभकारी है . call centaro की उपयोगिता इस पार प्रकाश डाल ही रहे है . अगर ये owl people नही होते तो किसी के घर पैसे या जवहरात नही होते ……सब चोर उठा ले जाते . क्युकी रात भर जग के हमे रात भर जगाणे वाला कोई न होता . कोई नही कहता जागते रहो .

एक बहुत ही प्रसिद्द संगीतकार भी है जो “owl people ” में आते है . कहा जाता है की saari संगीत साधना और रचना वो रात में ही करते है . इसीलिये वो बडा ही उमदा काम करते है . यहा देखिये , उल्लू उनके कितने काम आ गया . विदेशो तक उल्लुओ की तऱ्ह काम करके ख्याती अर्जित की है . उल्लू न होते तो ये कहा सम्भव था ? उनका एक और गुण उल्लुओ की तरह है . उल्लू तरह तऱ्ह की आवाज़े निकलता है . ये भी तरह तरह की आवाज़े निकलते है . लेकिन वो उल्लू की तरह talented नहीं है इसलिये वाद्य यंत्रो की सहायता लेनी पडती है . इस तऱ्ह वो उल्लुओ के ज्यादे समीप है .अंग्रेझी me “degree of owlness” इनके अंदर ज्यादे है . (छोटे में, ये ज्यादे उल्लू है ). रंग रूप क मामले में “benefit of doubt” दे के छोड़ देना बेहतर है . तो इसका मतलब है की जो जितना ज्यादे उल्लू है . उतना ज्यादे प्रसिद्धी है उसके पास . इसलिये अगर आप प्रसिद्धी चाहते है तो उल्लू बनने का कोई कोर कसर न छोडीये . स्वामी जी के शब्दो मे ,”उठो जागो और उल्लू बनने के पहले रुको मत “. मेरी समाज के नवयुवको से अनुरोध है की अगर समाज मे क्रांती का उद्भव करना है तो हमे उल्लू बनना ही होगा . उनका अनुकरण करणा होगा . उन्हे अपना रोले मोडेल बनाना होगा . ऊल्लुओ से ही समाज का पुनरुथान सम्भव है . jai hind !!
“सामाजिक उद्भव मे उल्लुको की भागीदारिता ” पे प्रकाश डालने के बाद आईये जरा अब उल्लू के शाब्दिक अर्थ का कुछ  परीक्षण कर लेते है . उल्लू के शाब्दिक अर्थ की महत्ता का सबसे ज्यादे उपयोग विद्यालयों में होता आया है . गुरु शिष्य संवाद में किसी भी शब्द से ज्यादे “उल्लू ” के प्रयुक्त होने की आवृति पाई गयी है . एक कम बिकने वाले अख़बार के द्वारा किये गए survey के अनुसार अध्यापक के उल्लू कहने की आवृति उतनी ही होती है जितना , नए नए साहित्यकार की रचनावो में ”जीवन ” का ,पुराने साहित्य में महिलाओ के लिए “चरित्र ” का , उर्दू गजलो मे “महताब ” का , प्रेमियों के संबोधन में “जान ” का , और आज के ज़माने में “आज के लडके ” और “पशिमी सभ्यता ” का होता है . जितनी ज्यादे आव्रीति उतना सफल संवाद .

उसके बाद पिता पुत्र संवाद का स्थान आता है . अगर उल्लू का ladis version मार्केट में होता तो पुत्रिया भी नहीं बच पाती . लेकिन सच कहू तो मुझे भी नहीं पता की उल्लू को स्त्रीलिंग में क्या कहते है . खैर . इस वजह से ही शायद उल्लू कहलाने की जायदाद पे सिर्फ पुत्रो का ही हक है . और प्रायः ये संबोधन पिता , पुत्र की माता की तरफ मुखातिब होकर , पुत्र को संबोधित करते हुए कहता है . नही तो क्या पता पुत्र ने biology पढी हो और गुण्सुत्रो का हवाला देते हुए उल्लू होने का कारन पता करने मे लग जाये ? जो भी हो , समाज के बापों ने , समाज के पुत्रो को उस हर समय उल्लू कहा है जब जब पुत्र ने , पिता को बताये बिना कुछ अच्छा काम किया है .
आवृति के सन्दर्भ में तीसरा स्थान बॉस और एम्प्लोयी संवाद का आता होगा . official setting मे बॉस के द्वारा उल्लू का सुसंस्कृत version पेश किया जाता है जिसका हिंदी संबोधन उतना ही मधुर होता है जितनी कडवी बॉस की उम्मीदे .और वो है fool . इस संज्ञा का उपयोग boss, short form की तरह करते है , जो विस्तृत रूप उस परिस्थिती के अनुसार कूछ  भी हो सकती है जैसे एक अर्थ मे , “अगले एक महीने तक मुझसे इन्क्रीमेंट , promotion , bonus आदि की कोई बात भूल से भी न करना ” होता है . कभी कभी वो इसकी सहायता से ये भी बताने की कोशिश करता है की इश्वर ने उसको ही ये अलौकिक शक्ति दी है जिसकी सहायता से वो ऐसे मुर्ख को झेल रहा है . नहीं तो ये इश्वर -प्रदत्त ब्रह्मास्त्र और किसी को प्राप्य  नहीं है . कुल मिला के boss employee संवाद  में उल्लू प्रयुक्त होने की आवृति , employee ki मांगो के समानुपाती तथा बॉस के असंभव से लगने वाली संतुष्टि के व्युत्क्रमानुपाती होती है . अंदरूनी तौर पे देखा जाये तो बॉस और एम्प्लोयी दोनों के एक दुसरे को समझने ke किये गए प्रयास में उल्लू होना सामानांतर पृष्ठभूमि का काम करता है . नेपथ्य से सतत “अबे तू उल्लू है ” की प्रतिध्वनि आती ही रहती है .
तो इस प्रकार से भिन्न भिन्न संवादों में उल्लू की महत्ता भिन्न भिन्न होती  है . लेकिन मूल अर्थ एक ही होता है , मुर्ख.

साहित्य में भी उल्लू का जिक्र किया गया है . किसी ने लिखा है ,
“बर्बाद गुलिस्तान करने को बस एक ही उल्लू काफी है ,
हर डाल पे उल्लू बैठा है , अंजाम -इ -गुलिस्ता क्या होगा .”
इसमें दो राय नहीं है ये दो lines उल्लुओ की प्रतिस्था पे सवाल उठाती  है और इसके प्रतिरोध में उल्लुओ ने एक सर्व दलीय बैठक भी बुलाई थी . लेकिन वहा भी opposition के सहयोग के आभाव में कुछ ठोस कदम नहीं उठाया जा सका . Opposition का मत था की जो कुछ भी हो , मानव साहित्य में स्थान पाना अपने आप में ही गौरव की बात है . इसके प्रतिरोध से हम रही सही प्रतिष्ठा भी खो देंगे . और जहा तक रही बदनाम होने की बात तो ये तो अपने अपने नजरिये की बात है . जो भी हो , बात आई गयी हो गयी
शाश्त्रो मे उल्लुओ के पौराणिक महत्व के बारे मे भी बताया गया है . लक्ष्मी जी के personal vehical (वाहक ) के post पे    उल्लू का ही appointment किया गया है . (इससे मुर्ख होने और धनाढ्य होने का समीकरण भी बैठाया गया है जो की जरुर  किसी पढ़े लिखे बेरोजगार का काम होगा . इसका उपयोग वो समाज में उठाये गए “अभी तक …..” से शुरू किये गए सवालो के  जवाब में करता होगा .) और आज तक उल्लू ने शिकायत का मौका नही दिया . आज तक लक्ष्मि जी उल्लुओ पे सवार है .तो कुल मिला के उल्लुओ का महत्व बड़ा है . हर लोक मे अलग अलग चीजो की वजह से अपना एक सामाजिक मुकाम हासील कर चुका है . ऐसा मुकाम कडे संघर्ष के बाद ही मिलता है . और उल्लुओ ने रात रात भर जग के ये संघर्ष किया है . अब अगर आपको कोई उल्लू कहे तो इस महत्व को ध्यान में रखा जाना चाहिए . उल्लू होना गौरव की बात है. मेरे लिये शान की बात है की मै उल्लू हु .