एक बार फिर सुनिए कन्या और स्वामी के मध्य हुए चैट वार्तालाप के कुछ अंश. आज का विषय है “प्रेम”.
स्वामी: (खुद में ही गुनगुनाने की अवस्था में बुदबुदाते हुए)
हो ?
नहीं हो ?
क्यों नहीं हो ?
हो तो क्यों हो ?
होना क्या है ?
नहीं होना क्या है ?
होना और नहीं होना , होने या नहीं होने से कैसे अलग है ?
जो है वही है या जो नहीं है वो भी है .
या …..
(तभी का कन्या का key board आगमन होता है.)
कन्या : प्रभु…ये क्या है…
स्वामी: टाइम पास!!
कन्या: क्यों कर रहे है…देखिये मै आ गयी…
स्वामी : अब तो देर हो चुकी है कन्या
कन्या : ऐसे न कहिये स्वामी …… बहुत देर से नयन बिछाए राह देख रही थी.
स्वामी : अब तो कह दिया .
कन्या : स्वामी वचन वापस ले लीजिये
स्वामी : Arrow and Talk…..में कभी reverse gear नहीं लगता कन्या
कन्या : हेहेहे …
स्वामी : दांत न दिखाओ..
कन्या : तो स्वामी मधुर और प्रेम वचन तो कह सकते हैं
स्वामी : प्रेम !!!!! (आश्चर्य का ठिकाना तो रहा, लेकिन रहने न दिया)
कन्या : हाँ
स्वामी : संज्ञा तक ही ठीक है ये . क्रिया तो बिलकुल नहीं
कन्या : स्वामी
स्वामी : कन्या
कन्या : ऐसा न कहिये
स्वामी : कह दिया
कन्या : प्रेम जीवन का आधार है
स्वामी : प्रेम विपासना है, वासना है……..वाह !!
(और अपने बैठाए तुकांत पे मुग्ध हो गए)
कन्या : नहीं स्वामी
स्वामी : हा कन्या
कन्या : मैं यह स्वीकारती हूँ की मेरे प्रेम में स्वार्थ है थोडा
स्वार्थ आपको पाने का आपके समीप होने का
किन्तु येही प्रेम है जो
मेरे जीवन का आधार है
स्वामी: ये आधार निराधार है
कन्या:ये मेरे होने का कारन है .
स्वामी : तुम्हारे होने का कारन तुम्हारे माँ बाप है . इसका श्रेय उनसे ना छिनो.
कन्या : ….और उनके बीच का प्रेम
तो हुआ न प्रेम मेरे होने का कारन
स्वामी : नहीं सम्भोग …
छी छी छी !!!
क्या कहलवा दिया तुमने
कन्या : प्रभु उसके होने की वजह भी तो
प्रेम है
स्वामी : नहीं …उन्माद है
कन्या : उन्माद ..
स्वामी : हा क्षणिक शारीरिक उन्माद
कन्या : प्रभु
स्वामी : बालिके
कन्या : मेरे जन्म का कारण आप के हिसाब से भले ही उन्माद हो
किन्तु आज मेरे इस जगह, जहाँ हूँ
मैं उसका कारन प्रेम के अलावा कुछ भी नहीं मानती
और आज के बाद जो भी बनू उसका आधार भी प्रेम होगा
हर इक मानव के अस्तित्व में प्रेम की मुख्य भूमिका है.
स्वामी : जहा जहा प्रेम की मुख्य भूमिका होती है वहाँ वहाँ मूर्खता की पृष्ठ भूमिका है..
कहाँ फ़स गयी हो प्रेम के झंझावातो में …
कन्या : प्रभु मेरे लिए जीवन के मायने प्रेम से अलग हो ही नहीं सकते
सुख का आधार प्रेम है
आनंद का आधार प्रेम है
प्रेम की परिभाषा ही अलग है
और जिस परिभाषा के अंतर्गत हम बात कर रहे हैं अभी
वो इक बहुत छोटा और नश्वर अंग है प्रेम का ‘
स्वामी : आनंद का आधार प्रेम नहीं ….मोक्ष है
कन्या : मोक्ष क्या ?
स्वामी : हाहाहा (ऐसे खुश हुए जैसे अज्ञानता का ऐसा अद्भुत उदहारण देखा ही न हो)
जो कन्या प्रेम के जंजालो में फसी रहेगी …
वो मोक्ष को कैसे जान पायेगी ?
अगर प्रेम ही करना है तो …इश्वर से करो …
उसे अपना Boyfriend बनाओ
कन्या : इश्वर कहाँ हैं
और अगर इश्वर हर वस्तु हर मानव में हैं तो उसी मानव से प्रेम कर रही हूँ
अर्थात
इश्वर से प्रेम कर रही हूँ
प्रेम भाव है
इश्वर भाव है
वो भाव जो सर्वापी है
और जो इश्वर सर्व-व्यापी है
वो उस मनुष्य में भी है
जिससे प्रेम है मुझे
कहाँ मैं इश्वर से प्रेम नहीं कर रही ?
स्वामी : हर चीज़ में जीवन है इसका कत्तई ये मतलब नहीं की हर चीज़ ही जीवन है
(फिर एक बढ़िया और अप्रासंगिक आंग्ल उदाहरण पेश करते है..)
Every human has mother that doesn’t mean humanity has mother
पाया ???
I mean….got?
कन्या : स्वामी ….
स्वामी : और अगर सभी में इश्वर है .. तो किसी और को पकड़ लो
उसमे भी इश्वर होगा ..
कन्या : मुझे इश्वर का ये ही रूप पसंद है
स्वामी : (अपनी भृकुटियो को सिकोड़ते हुए) निर्बोध !!!
कन्या : सबका अपना इश्वर है और सबका इश्वर एक है
स्वामी : इश्वर का क्या रूप है रे ???
मै कौन होता हु उसे अपने रूप में जकड़ने वाला ?
(फिर खुद पे ही मुग्ध होते हुए…)
मै कौन होता हू उस निराकार को आकार देने वाला??
कन्या : अभी तो इश्वर का मेरे लिए आप है…
स्वामी : इश्वर कोई प्लाट है जो सबका अपना अपना है ?
नहीं !!
इश्वर एक है
सत्यमेव जयते
सॉरी ..
सबका मालिक एक है
कन्या : और मेरे मालिक आप
स्वामी : मै तो खुद नौकर हूँ.
उस इश्वर का
वो ही सत्य है
वो ही परम सत्य है
वो ही …
(फिर कुछ याद ही नहीं आता उन्हें )
जो है वो ही है.
कन्या : उसी को पा रही हूँ
स्वामी : किन्तु मार्ग तो गलत है न
कन्या: कृष्ण या राम इश्वर नहीं थे?
उसने जुडी हुई अराधना ही इश्वर है
कन्या : मूर्ति में शक्ति नहीं होती
स्वामी : अगर सही सीमेंट न प्रयोग करो तो..
कन्या:शक्ति तो आस्था में होती है
स्वामी : बिलकुल
कन्या : वो ही इश्वर है
मेरी आस्था आप में है
आप ही इश्वर हो मेरे
क्यूंकि मेरी आस्था उस इश्वर में है जो सर्वत्र है
जो सब में है
स्वामी : confuse मत करो …
कन्या : और उसी इक रूप में मेरी आस्था है
स्वामी : सबसे पहले तो अपनी आस्था को एक जगह settle करो
कन्या : वो इक ही जगह है
आप में
आप में ही में मेरा इश्वर है
स्वामी : ये पाप है …ये गलत है….illegal encroachment है यह
कन्या : अब का करेंगे स्वामी
आपको अभी सत्य का ज्ञान जो नहीं था . मैंने करवाया है
स्वामी : ये आपका भ्रम है
कन्या : और वैसे भी किसी को, क्या पाप है और क्या पुण्य है, का निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है न ही शक्ति है .
भ्रम में तो हम सब है
किसी का सत्य किसी और का भ्रम है..
स्वामी : जिस एक स्वरुप में आपकी आस्था है , उसको कोई रूप देना उसके रूप ने दाग लगाना है …
ब्रह्म का क्या रूप है ?
जिस प्रकार रेगिस्तान में मरीचिका देख लोग पानी समझ बैठते है …
ठीक उसी प्रकार तुम उस एक ब्रह्म का रूप मेरे अंदर देख रही हो …
मेरा सहारा लेने की क्या आवश्यकता है ?
Direct contact करो इश्वर से.
कन्या : क्यूँ ?…क्यूंकि दूर से दोनों इक जैसे लगते हैं …. अंतर उसी को पता चलता है जो प्यासा होता है और वहां तक जाता है किन्तु …जिसे प्यास नहीं लगी हो ..कई बार वो पानी भी मरीचिका समझ कर छोड़ देता है
और जीव हूँ स्वामी ..भ्रम का स्वरुप हो सकता है की समझ में न आये
मैं अपनी श्रद्धा और आस्था से ही उन्हें पाना चाहती हूँ
ज्ञान से कोशिश करू तो शायद बहुत वक़्त लग जाये
ज्ञान तार्किक होता है
कित्नु प्रेम
भक्ति
विश्वास पे आधारित होती है
विश्वास कारण नहीं ढूंढता
स्वामी : तुम उन प्राणियों की तरह हो जो स्वप्न में ही रहना चाहते है ….
किन्तु ये जान ले कन्या ..
नींद खुलती है एक दिन …
सत्य जानना पड़ता है
अंतर दिख जाता है
फिर पश्च्याताप के सिवा कुछ न कर पायेगी ..
कन्या : मेरा सत्य उस स्वप्न की भाँती है जिस में मुझे पता है की यह सत्य है, मैं अपना स्वप्न रच रही हूँ …क्यूंकि अभी यह सोने की अवस्था है ..
मैं जानती हूँ की यह स्वप्न है
मगर अभी आनंद आ रहा है इस स्वप्न में
यह अवस्था बिकुल उसी भाँती है जिस भांति हम स्वप्न में ही जानते हैं की हम स्वप्न में हैं
स्वामी : तुम्हे आनंद में आनद इसलिए आ रहा है क्युकी तुने परमानन्द का सुख नहीं लिया …
एक बार परमानंद का सुख ले के देख, आनंद को भूल जायेगी…
परमानन्द आनद का advance version है कन्या
क्यों इन क्षणिक pleasure में पड़ी है ;
नींद से जाग …
सही मार्ग को पहचान
उठ…wake up.
कन्या : प्रभु में नींद में हूँ ही कहाँ… नींद में होती तो यह ज्ञान कहाँ होता की यह स्वप्न है . जब हम वाकई नींद में होते हैं तो स्वप्न का ज्ञान कहाँ होता है?
स्वामी : हेहे …मुर्खता की एक और बात की तुने
कन्या : तो अपनी बुद्धि का परिचय दीजिये प्रभु
स्वामी : तू मुझे अपनी बुद्धि का परिचय देने के लिए नहीं कह रही है कन्या …..
अपितु बीन बजाने के लिए कह रही है ..
तू अपने क्षणिक सुख में लिप्त है. तुझे और कुछ नहीं दिख रहा. ना ही तू देखना चाहती है.
कन्या : बुद्धि से इश्वर को नहीं पाया जाता प्रभु …बुद्धि तर्क है …और तर्क इश्वर से नहीं मिलता ,,दूरी बढा देता है ,विश्वास से वहां पहुंचा जा सकता है
स्वामी : बहुत सही
कन्या : प्रेम का मार्ग छोटा है ,में छोटे रस्ते पे हूँ
स्वामी : तू गलत रास्ते पे है.
कन्या : तर्क दूर करता है और जब तक ज्ञान मिलता है तब हर तर्क खुद ही हार जाता है.
स्वामी : गलत और आसान होता है छोटा मार्ग .
कन्या : कौन सही है और कौन ग़लत मार्ग पे यह तो मंजिल को पाने वाला ही बता सकता है स्वामी
स्वामी : तू बहला रही है
फुसला रही है
मुझे
अपने आपको
कन्या : नहीं प्रभु
मेरी बुद्धि ….
स्वामी : कम है
कन्या : नहीं…..इतनी तार्किक है की मेरे मन को फुसलने नहीं देती है
स्वामी : हाहाहा…
कन्या :बस विश्वास ही इतना मज़बूत है की बुद्धि को वश में रखता है
स्वामी :यही तार्किक बुद्धि तो तुझे सत्य से दूर लिए हुए है
तेरे ही कहने के हिसाब से
कन्या : उस बुद्धि का तो अतं कर चुकी हूँ प्रभु तभी तो केवल विश्वास और प्रेम से पा न चाहती हूँ इश्वर को
स्वामी : कोई एक बात कर कन्या…Confuse मत कर
कन्या : मेरे अंदर कोई confusion नहीं है प्रभु
स्वामी : confusion तेरे अंदर नहीं …तू स्वयं है
कन्या : जिस जगह पे खड़े हो कर आप तर्क कर रहे हैं
वहां से में हो आई हूँ
स्वामी : हाहाहा
यहाँ से तू हो आई है ?
तू सत्य से हो आई है ?
वापस असत्य में ?
कन्या : वो सत्य नहीं है जो आप कह रहे हैं …
स्वामी :च!! च!!च!!
कन्या : और वो भी सत्य नहीं है जिस पे नहीं तर्क कर रही हूँ
स्वामी : देखा प्रेम करने का फल ……बुद्धि Confusion से भरी हुई है.
कन्या : अगर सत्य का अनुसरण करते तो हमारे बीच यह बहस ही नहीं होती
स्वामी : ये बहस नहीं है रे …..
ये ज्ञान का प्रवाह है …जो अपने आप मुझसे निकल रहा है …जैसे शिव जी से मदर गंगा
कन्या : स्वामी ..
स्वामी : मूर्खे
कन्या : आप के सहमत हो जाउंगी तो अपने वचनों से फ़िर जाउंगी और अगर नहीं होंगी तो प्रेम की परिभाषा से
तो मैं इस विषय पर क्या हूँ
स्वामी : तू हमेशा दुविधा में रहेगी इसी तरह
क्युकी प्रेम का मार्ग ही ऐसा है
कन्या : मैं दुविधा में नहीं हूँ स्वामी
प्रेम में हूँ
स्वामी : एक ही बात है…जैसे तेरा स्वप्न वाला केस है…
कन्या : नहीं ऐसा लग रहा है की में स्वपन में हूँ और मुझे पता है की यह स्वपन है
स्वामी : पागल मनुष्य जो पहली बात बोलता है वो यही की वो पागल नहीं है
किन्तु हाय रे किस्मत !!
वो पागल ही होता है …
ये काम डोक्टर का है
जैसे की मै यहाँ …
कन्या : और आपको लगता है की आप डॉक्टर हैं ?
स्वामी : लगता ????
भारी अज्ञानता में है तू तो
इलाज़ मुश्किल है
किन्तु असंभव नहीं
क्युकी तू मेरे पास आई है
मै १०० % GUARANTEE देता हूँ अपने मरीजों को ..
कन्या : स्वामी में तो फिर अनंत काल के लिए अज्ञान और मरीज़ होना चाहूंगी
चलिए इसी तरह आपके संपर्क में रहने का मौका मिलेगा.
और मेरे जीवन का उद्देश्य ही क्या है?
स्वामी : (मुस्कराते हुए)कन्या…..इलाज मेरे assistant करेंगे.
स्वामी : मै अभी उनका नाम पता मेल किये देता हूँ.
और हमारी कोई और शाखा नहीं है ..
Payment cash mode में ही होगा….वो क्या है की आश्रम की कार्ड मशीन खराब चल रही है.
कन्या : आप बात से फिर रहे हैं स्वामी..मैं तो बस आप ही से इलाज़ करवाना चाहती हूँ
स्वामी : hummmm
अच्छा इलाज चाहती हो ?
कन्या : इलाज़ चाहती हूँ लेकिन ठीक होना नहीं
स्वामी : मुझे पता है …
यहि होता है …
अज्ञानता चीज़ ही ऐसी है …
तेरी क्या गलती है ?
ये प्रेम का विषाणु ही ऐसा है …
कन्या : अगर ज्ञान को प्राप्त करने का अर्थ
अर्थ आप से दूर होना है तो मैं अज्ञानी ही सही
स्वामी : फॉर्म भर के admission ले लो, और हां कोई और कन्या है तो उसे भी ले आओ … हमारे worker खुश होंगे
कन्या : फॉर्म भरने की क्या आवश्यकता है…..emergency केस है
स्वामी : हेहेह …
मुर्ख …डाक्टर मै हूँ ना..
कन्या : हां…
स्वामी : तो मुझे जानने दे की क्या emergency है और क्या नहीं …..
तू मुझसे ठिठोली कर रही है???
कन्या : नहीं स्वामी,
स्वामी आप रुष्ट हो रहे हैं ?
स्वामी : नहीं रे
तेरी बीमारी का स्वरुप देख मै रुष्ट हो ही नहीं सकता …
तेरी क्या गलती है
कन्या : वो ही तो स्वामी
कितनी नादाँ हूँ न मैं 😉
स्वामी : 🙂
तू घबरा मत
सब ठीक कर दूंगा
बस पेमेंट का देख ले
कन्या : क्या पेमेंट है
स्वामी : 🙂
वैसे तो आसाधारण बीमारी है तेरी…
मुश्किल इलाज है …
प्रेम का virus बहुत contagious होता है …
हमारे workers भी खतरे में होंगे … तो इस हिसाब से तू लगा ले ..
कन्या : किन्तु मुझे तो स्वामी को बीमार करना है.
स्वामी : हा हा हा हा हा !!!!!
मेरा तो टीकाकरण है रे !!!
कन्या : यह बिमारी अक्सर टीकाकरण क बाद ही हो जाती है
स्वामी : मरीज़ है न तू ???
कन्या: जी..
तो वो ही रह न ..
कन्या : बिमारी के symptoms मैं झेल रही हूँ न !
स्वामी: पिछले २० सालो से R&D कर रही है हमारी टीम …इसपे.
थोडा संयम तो रखना होगा न
कन्या : सारे खुद मरीज़ रह चुके हैं
और जाने कितने अपना मुख्या अंग भी खो चुके हैं
स्वामी : जैसे ?
तू मष्तिष्क की बात कर रही है न ? तो उसे तो खोना ही पड़ता है ..
कन्या : नहीं जी
अब रहा-सहा वो ही केवल रह गया है उन में 😉
ये सुनिए प्रभु,
“Man’s heart is made of glass, once crack can’t be mend, women’s heart is made of wax, even though it melts and burns so many time, but still can be reused..”
स्वामी : अच्छा!! तो यही कारण है की तेरे समाज में एक लड़की कईयों से चक्कर चला लेती है ….मोम ठीक कर कर के!!
कन्या : नहीं ……..They never losses the ability to love. मैं यह कहना चाहती हूँ ….
स्वामी : की तू मुर्ख है
कन्या : नहीं
स्वामी : हां
कन्या : की मैं बहुत प्रेम करती हूँ आप से
स्वामी : तू मुझे veterinary का डॉक्टर समझती है ?
कन्या : अब ऐसा क्या किया मैंने
स्वामी : तू क्यों जानवरों जैसी हो गयी है…. Uncontrolled ??
अरे मनुष्य का रूप है तो उसी में रह !
और अब बस कर…
जा के पैग बना.
कन्या : कैसे बनाऊ?
नीबू आज भी नहीं है
Orange juice चलेगा ?
स्वामी : ये कर्मचारी भी निकम्मे हो गए है. कितनी बार कहा की पेड़ लगाओ आश्रम में …
खैर ….
Orange juice है तो …वही ले आ….
और कुटिया से वोदका भी लेती आना, सुना है बड़ा तेज़ है इस द्रव्य में …
और सुन …..
कन्या: हाँ कहिये…
स्वामी : वो रूस वाली लाना …
वहा की कन्यायो जैस प्रताप है उसमे…
जा !
कन्या : तब तो बिकुल भी नहीं लाऊंगी स्वामी!
स्वामी : अच्छा अच्छा ….
वहाँ के बालको का भी अपना मज़ा है
तू ला तो
कन्या: मुझे किसी और का मज़ा नहीं लेना है मुझे तो…
स्वामी : (चिल्लाते के अपने कर्मचारियो को बुलाते हुए)….अरे इसे जल्दी से भरती कराओ कोई!!!
(और फ़िर पर्दा निचे गिरने लगता है और ज्ञान का नशा चढ़ने लगता है!!)
पटकथा एवं निर्देशन : मानस त्रिपाठी
मंच संयोजन : wordpress.com
27/11/2011
Categories: playlet, Satire and humour . . Author: मानस . Comments: 2 Comments